आत्मप्रकाश शुक्ल : नाचै नदिया बीच हिलोर
नाचै नदिया बीच हिलोर
बन में नचै बसंती मोर
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।
सूधै परैं न पाँव, हिया मां हरिनी भरै कुलाचैं
बैसा बावरी मुँह बिदरावै, को गीता को बाँचै
चिड़िया चाहै पंख पसार, उड़िबो दूरि गगन के पार
मांगै रसिया सों मीठी मनुहार गोरिया।
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।
गूंगे दरपन सों बतिरावै करि-करि के मुँहजोरी
चोरी की चोरी या कै ऊपर से सीनाजोरी
अपनो दरपन अपनो रूप फैली उजरी-उजरी धूप
मांगे अपने पै अपनो उधार गोरिया।
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।
नैना वशीकरन, चितवन में कामरूप को टोना
बोलै तो चांदी की घंटी, मुस्कावै तो सोना
ज्ञानी भूले ज्ञान-गुमान, ध्यानी जप-तप-पूजा-ध्यान
लागै सबके हिये की हकदार गोरिया।
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।
सांझ सलाई लै के कजरा अंधियारे में पारो
धरि रजनी की धार गुसैयां, बड़ो गजब कर डारो
चंदा बिंदिया दई लगाय, नजरि न काहू की लग जाय
लिखी विधिना ने किनके लिलार गोरिया
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।
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