Category Archives: Hasya Kavi Sammelan

Aaj Ki Raat Baanhon Mein : Aatmprakash Shukla

आत्मप्रकाश शुक्ल : क्या पता ये मिलन फिर दुबारा न हो

आज की रात बाँहों में सो जाइए
क्या पता ये मिलन फिर दुबारा न हो
या दुबारा भी हो तो भरोसा नहीं
मन हमारा न हो मन तुम्हारा न हो

आज की रात आँखों में खो जाइए
क्या पता कल नयन हो नज़ारा न हो
या नज़ारा भी हो तो भरोसा नहीं
मन हमारा न हो मन तुम्हारा न हो

Laughopathy

Laughopathy
If you believe that Laughter is the best medicine, then we have a panel of best laughotherapists for your stress treatment. We recommend you Mr Arun Gemini to spread your lips with a touch of laughter. Mr Chirag jain is a specialist of economical stress. Mr Sanjay Jhala treat his patients with cultural humor shocks. Mr Mahendra Ajanabi & Mr Vedprakash Ved too have quality to reduce your stress just through their sharp injections of punches.

Five Stars of Hasya

A combination of Shailesh Lodha, Arun Gemini, Chirag Jain, Shambhu Shikhar & Sanjay Jhala

If you want to blast a bomb of humour & Applause in your auditorium, then this is the best package for you. All of the poets of this package has a star value and know to pick the vibrations of audience. Tarak Mehta fame Shailesh Lodha is the other name of popularity. His fans club is the biggest one among the all poets of country. On the other hand Arun gemini is the synonym of Haryanvi Hasya. Laugh India Laugh & Chunavi Chakallas fame Chirag Jain make people laugh with his sharp punches on day to day life. Laughter champion Shambhu Shikhar creates light humour through his mindless funny four liners. Sanjay Jhala is a marvelous satirist as well as mimicry artist too.
In short this package contains every form of humour and satire. So what are you thinking for, just dial these ten digits and ensure a night of laughter with your dear ones.

Wah Wah Kya Baat Hai

Wah Wah Kya baat hai is a popular TV show of poetry. Tarak Mehta fame Shailesh Lodha hosts this show with fabulous poets of country. We provide a package containing famous faces of hasya kavita. This package is full of laughter and comedy. These faces are now available to perform live in front of your audience.

Char Laina by Surendra Sharma


Surendra Sharma is synonym of Hindi Hasya Kavita. He got immense popularity from his CHAAR LAAINA. So we offer you a show with this unique flavour of comic poetry on your stage. Duration of this laughter bomb is 120-150 minutes. Surendra Sharma leads the show along with Arun Gemini, Chirag Jain and Shambhu Shikhar. All of these faces are identity of Hasya Kavita these days.
Just call us on +91 9868573612 to book this show and get ready for a LAUGHQUAKE in front of your audience.

Holi Kavi Sammelan

A combination of three Hasya Kavi for Holi Festival.

A combination of three Hasya Kavi for Holi Festival.

Holi एक ऐसा Festival है जिसके बहाने लगभग पूरे समाज का Get-together हो जाता है। छोटी-छोटी संस्थाओं से लेकर बड़े-बड़े Corporate तक Holi Milan के समारोह आयोजित किये जाते हैं। इन सभी programmes में Hasya Kavi Sammelan एक most suitable और entertaining programme रहता है। अकेले Delhi और NCR में ही Holi से पहले के 30 दिनों में लगभग 500 Kavi Sammelan होते हैं। इन छोटे-छोटे Kavi Sammelans में एक से लेकर 10-12 poets तक का Participation होता है। Delhi के अतिरिक्त Kolkata, Hydrabad, Chennai Jaipur, Bhopal, Agra, Udaipur, Jodhpur, Ahmadabad, Surat, Vadodara, Mumbai, Gwalior, Dehradun, Meerut, Panipat, Sonepat, Kurukshetra, Ambala, Hissar, Nagpur, Aurangabad, Mathura, Siligudi, Guwahati और Patna जैसे शहरों में भी इस तरह के Holi Milan के Kavi sammelans की धूम रहती है।
Hasya-Vyangya और Masti के माहौल में कवि सम्मेलन का तड़का होली को और भी अधिक रंगीला बना देता है। देश के Hasya Kavis के लिये Holi से पहले के 30 दिन सर्वाधिक व्यस्त होते हैं। 3-3 महीने पहले से लोग अपनी-अपनी Team Book कर लेते हैं। Shailesh Lodha, Arun Gemini, Mahendra Ajanabi, Chirag Jain, Shambhu Shikhar, Praveen Shukla, Sanjay Jhala, Mohinder Sharma, Ramesh Muskan, Vedprakash Ved, Sunil Jogi, Pratap Faujdar, Aashkaran Atal, Ashok Chakradhar, Surendra Sharma, Dinesh Bawra, Pradeep Chobey, Sarvesh Asthana, Padma Albela, Sunil Vyas, Yusuf Bharadwaj और Surendra Dubey होली की मस्तियों में रंग भरने वाले सबसे पहले Hasya Kavi हैं।

Hindi Kavita Aur Sarkar ka Virodh

शासन के विरुद्ध कविता : चिराग़ जैन

कविता अपने युग की अकथ कथाओं का जनहितकारी वर्णन है। कवि जब जनपीड़ा से विह्वल होकर शासन के विरुद्ध लेखनी चलाता है उस समय उसे इस बात की तनिक भी चिंता नहीं करनी चाहिए कि सत्ता और तंत्र का गठजोड़ उसे किस सीमा तक व्यक्तिगत हानि पहुँचा सकता है।
ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध कविता ने पूरा एक आंदोलन खड़ा किया। उस समय वही लेखनी लच्छेदार भाषा में वायसराय और ब्रिटिश राजसत्ता की चरणवंदना लिख कर व्यक्तिगत लाभ अर्जित कर सकती थी किन्तु उन बूढ़ी हड्डियों ने जनहित को सर्वोपरि रखकर “तख़्त-ए-लन्दन तक चलेगी तेग़ हिंदुस्तान की” और “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” जैसे तराने रचे।
आज़ादी के जश्न में ग़ाफ़िल होते समाज की कलाई पकड़ कर उत्सव को सावधान करते हुए गिरिजाकुमार माथुर ने डिठौना लगाते हुए कहा-
आज जीत की रात पहरुए सावधान रहना
शत्रु हट गया लेकिन उसकी छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज कमज़ोर हमारा घर है

बाबा नागार्जुन, जो कि स्वयं को वामपंथ का समर्थक कहते थे उन्होंने भी 1962 की लड़ाई के बाद अपनी आजन्म समर्थित विचारधारा को ताक़ पर रखकर स्पष्ट लिखा-

वो माओ कहाँ है वो माओ मर गया
ये माओ कौन है बेगाना है ये माओ
आओ इसको नफ़रत की थूकों में नहलाओ
आओ इसके खूनी दाँत उखाड़ दें
आओ इसको ज़िंदा ही ज़मीन में गाड़ दें

यह काव्यांश इस बात का प्रमाण है कि “आह से उपजता गान” क्रमशः प्रकृति, मानवता, मातृभूमि, जनहित, शासनतंत्र और अंत में स्वयं को प्राथमिकता देता है। हर अच्छी कविता की क़ीमत रचनाकार को व्यक्तिगत बलिदान से चुकानी पड़ती है। कभी कल्पना करें तो सिहरन उठती है कि अपनी 19 वर्षीया बिटिया की मृत्यु की टीस को शब्दों में पिरोकर “सरोज-स्मृति” लिखने वाला निराला कितनी बार बिंधा होगा!
कभी अपने मुहल्ले से गिरफ़्तार होकर निकलने की कल्पना करेंगे तो शायद फ़ैज़ की ये एक पंक्ति पढ़कर दिल बैठ जाएगा- “आज बाज़ार में पा-ब-जौला चलो”। फ़ैज़ इस स्थिति में भी जनहित को सर्वोपरि रखते हुए सत्ता को आईना दिखाने के एवज़ में अपने संभावित हश्र को लिखने से नहीं बाज़ आए कि –
हाकिम-ए-शहर भी, मज़मा-ए-आम भी
तीर-ए-इलज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी
रख़्त-ए-दिल बांध लो दिलफिगारो चलो
फिर हमीं क़त्ल हो आएँ यारो चलो

अश्रुओं से सिक्त कृति ही श्रोता के अधरों और नायनकोर को एक साथ स्पंदित करने में सक्षम होती है। सत्ता के विरुद्ध लेखनी कवि का धर्म नहीं है लेकिन जनहित के हित को स्वर देते समय शासक के पक्ष अथवा विपक्ष का गणित लगाना रचनाकार के लिए अधर्म अवश्य है।
कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा सदस्य होने के बावजूद जब दिनकर ने नेहरू जी की नीतियों के विरुद्ध “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” गाया तब उनके स्वर में किसी भय का कम्पन सुनाई नहीं दिया।
यूँ आपातकाल भुगतने वाली पीढ़ी बताती है कि उस समय सरकारी कर्मचारी समय पर दफ़्तर पहुँचने लगे थे। लोग अनर्गल आलस्य को त्यागकर अनुशासित हो चले थे। कानून तोड़ने से लोग घबराने लगे थे, आदि। लेकिन यह अनुशासन जनता को किसी नैतिक प्रेरणा की बजाय बलपूर्वक सिखाया गया था। लोकतंत्र की आत्मा को मसोस कर तानाशाही के बीज रोपने का क्रूर प्रयास किया गया था। यही कारण था कि दुष्यन्त के सैंकड़ों आशआर आपातकाल के विरुद्ध जनता की आवाज़ बन गए, यथा-

मत कहो आकाश में कोहरा घना है
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
—–
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर ये तमाशा देखकर हैरान है
—–
जाने कैसी उँगलियाँ हैं जाने क्या अंदाज़ है
तुमने पत्तों को छुआ था जड़ हिला कर फेंक दी

शासन की आत्ममुग्धता पर चोट करते हुए शायर कह उठा कि
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा

जेपी के समर्थन में दुष्यंत ने बेबाक़ कहा कि
एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यूँ कहो
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है

यहाँ तक कि जनक्रांति को पुनर्जीवित करने के प्रयासों से भी दुष्यंत पीछे नहीं हटे-

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
—-
एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तो
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आहत हुई तो भवानी प्रसाद मिश्र लिख बैठे-

यह दिन कवि का नहीं
चार कौओं का दिन है

नागार्जुन ने तो काव्य के माधुर्य को विस्मृत कर तत्कालीन प्रधानमंत्री के विरुद्ध यहाँ तक लिख डाला-

इंदु जी इंदु जी क्या हुआ आपको
रानी-महारानी आप
नवाबों की नानी आप
सुन रही सुन रही गिन रही गिन रही
हिटलर के घोड़े की एक एक टाप को
छात्रों के खून का नशा चढ़ा आपको

और भी अधिक कड़वे होकर बाबा लिखते हैं-
देखो यह बदरंग पहाड़ी गुफ़ा सरीखा
किस चुड़ैल का मुँह फैला है
देखो तानाशाही का पूर्णावतार है
महाकुबेरों की रखैल है
यह चुड़ैल है।

अटल बिहारी वाजपेयी जी जनहित के पाले में खड़े हुए तो नैराश्य को चुनौती देते हुए चिंघाड़ उठे थे-
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूंगा।

इन्हीं अटल जी की शिखर वार्ता के विरोध में ओम् प्रकाश आदित्य जी ने लालकिले से कविता पढ़ी –
तूने ये क्या किया अटल बिहारी मुशर्रफ़ को महान कर दिया
उसपे मेहरबान हुए इतने भारी, गधे को पहलवान कर दिया

हर युग में कविता ने सत्ता की आँखों में आँखें डालने की ज़ुर्रत की है। वागीश दिनकर जी ने इस सन्दर्भ में साफ़ साफ़ लिखा है कि-
युग की सुप्त शिराओं में कविता शोणित भरती है
वह समाज मर जाता है, जिसकी कविता डरती है
शिवओम अम्बर जी ने तुलसी के वंशजों की सत्यभाषी परम्परा को सम्बल देते हुए कहा कि-
या बदचलन हवाओं का रुख़ मोड़ देंगे हम
या ख़ुद को वाणीपुत्र कहना छोड़ देंगे हम
जब हिचकिचएगी क़लम लिखने से हक़ीक़त
काग़ज़ को फाड़ देंगे, क़लम तोड़ देंगे हम

इस निर्भीक स्वभाव का ही परिणाम था कि जब उत्तर प्रदेश में कला के कंगूरे यशभारती की आस में शासन के गलियारों में फानूस से कालीन तक बनने को तैयार थे तब लेखनी की कतार का सबसे छोटा बेटा प्रियांशु गजेन्द्र मुज्ज़फरनगर के दंगों में जनता की कराह सुनकर लिख रहा था कि-
भोर का प्यार जब दोपहर हो गया
भावना का भवन खंडहर हो गया
तुम संवरते-संवरते हुईं सैफ़ई
मैं उजड़कर मुज़फ्फरनगर हो गया

इसी परम्परा के निर्वहन में अपने अभीष्ट की पूर्ति के बावजूद नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने पर हरिओम पँवार जी ने काव्य कुमकुम से सिंगरते हुए लिखा-
सत्ता का सिंहासन से संग्राम नहीं रुकने दूंगा

एक बार पुनः जनता की सहनशक्ति और शासन की इच्छाशक्ति का आमना-सामना हुआ है। कवियों-लेखकों-व्यंग्यकारों और व्यंग्यचित्रकारों ने एक बार पुनः देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री की किसी नीति से आहत जन की अकथ पीर को लेखनी और तूलिका पर साधने का प्रयास किया है। किन्तु प्रधानमंत्री जी के प्रशंसक उस सारे प्रयास को पूर्वाग्रह का नाम देकर सोशल मीडिया पर गाली-गलौज तक की भाषा से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यह दुःखद भी है और दुर्भाग्यपूर्ण भी।
वर्तमान में प्रधानमंत्री जी ने एक ऐसा निर्णय लिया है जिसका भविष्य संभवतः सुखदायी है किन्तु उस निर्णय के क्रियान्वयन की तैयारी इतनी कमज़ोर थी कि जनता का एक बड़ा वर्ग आर्थिक विपन्नता के कूप में आ पड़ा है। इस कुएँ के भीतर इतना अँधेरा है कि इस बड़े निर्णय की कुक्षि से निकलती रौशनी दिखाई नहीं दे रही है। चाटुकारों से घिरा नेतृत्व जनता की समस्याओं को देखकर भी अनदेखा कर रहा है और आत्ममुग्धता के ज्वर के परिणामस्वरूप अपनी पीठ स्वयं थपथपा रहा है।
किसी नीति के क्रियान्वयन से यदि काम-धंधे ठप्प हो जाएं, अराजकता जैसा माहौल बनने लगे, लूटमारी, कालाबाज़ारी, जमाखोरी, आपसी विद्वेष, वर्गसंघर्ष और मृत्यु तक की घटनाएँ अचानक बढ़ जाएं तो शासन का कर्त्तव्य बन जाता है कि वह अपनी दूरदर्शिता की विफलता स्वीकार करे। ऐसा करने की बजाय समस्याओं से घिरी जनता और परेशानी से चिल्लाने वालों को “बेईमान” और “देशद्रोही” कहा जाने लगा है।
स्वयं प्रधानमंत्री जी ने इन सब ख़बरों से पीठ फेरते हुए कह दिया कि- “बेईमान चिल्ला रहे हैं और ग़रीब आदमी चैन की नींद सो रहा है।”
इस देश की स्थिति एक रेतीली पगडण्डी जैसी है। इस पगडण्डी पर बढ़ाया गया हर क़दम कुछ धूल ज़रूर उड़ाएगा। उस धूल से यदि आपके पीछे खड़े किसी व्यक्ति को धँसका लग जाए और वह खाँसने लगे तो उसे शुष्क कण्ठ को पानी का स्पर्श देने की बजाय उसे बेईमान कहा जाना न तो नैतिकता का द्योतक है न मानवता का।
नोटबंदी के विरुद्ध जो भी कुछ कहा जा रहा है उसका केवल इतना ही तात्पर्य है कि रेतीली पगडण्डी पर बड़े निर्णय की मोटर दौड़ाने से पूर्व यदि परिपक्व तैयारियों का छिड़काव कर लिया जाता तो आपकी मोटर के पीछे पुष्पवृष्टि करने वाली जनता का खाँस-खाँस कर बुरा हाल न होता।

© Chirag Jain

Occasions of Kavi Sammelans

एक समय था जब Kavi-sammelan साल मे एकाध बार कुछ ख़ास अवसरों पर ही आयोजित किये जाते थे। आयोजक होती थीं साहित्यिक संस्थाएँ। उसके बाद सामाजिक संस्थाओं ने भी कवि सम्मेलन आयोजित कराने शुरू किए। लेकिन अब जबकि संचार का ये परंपरागत माध्यम अपने स्वर्णिम दौर को जी रहा है; अब साल भर में हज़ारों कवि सम्मेलन National, International, State, District, Town और Corporate स्तर तक आयोजित कराए जाने लगे हैं। अब तो केवल अवसर चाहिये। और अवसर इस देश में बिखरे पड़े हैं। यहाँ उन अवसरों की एक सूची दी जा रही है जिनके उपलक्ष्य में सर्वाधिक कवि सम्मेलन कराए जाते हैं-
Holi
Mahavir Jayanti
Ganeshotsava
Dussehra
Maharana Pratap Jayanti
Vivekananda Jayanti
Paryushan Parv
Republic Day (Gantantra Divas)
Independence Day (Swatantrata Divas)
Agrasen Jayanti
Hindi Divas
Gandhi Jayanti
Corporate Dealers Meet
Annual Festival of Educational Institutions
Product Launch
Alumni Meet
Wedding Events
Anniversary
New Year Celebration
Parshuram Jayanti
Panch Kalyanak of Jain Commynity
Janmashtami
Durga Pooja
Rani Lakshmibai Jayanti
Atal Bihari Vajpeyi Jayanti
Election Campaign
Club Meets
Kitty Meets
Haryali Teej
Foundation Days
Haryana Divas
Trade fare
Traditional fares
Bhagat Singh Jayanti
Ambedkar Jayanti

Hasya Yoga

On the occasion of first INTERNATIONAL YOG DIWAS here we are presenting some wallpapers which contains some innovative yogasans based on day to day behavior of prominent HASYA KAVIs of INDIA.
These Asans seems easy and funny but actually these may be useful for anybody as general human behavior is dependent on our acts.

Hasya Yog Aasan By Pradeep Chobey

Hasya Yog Asan by Arun GeminiHasya Yog Asan by Chirag Jain

Hasya yog asan by Sanjay JhalaHasya Yoga Asan by Swami Mahendra AjanabiHasya Yogasan by Swami Ramesh MuskanHasya Yogasan by Swami Shambhu ShikharHasya Yogasan by Swami Praveen Shukla