हिंदी दिवस के दोहे : उर्मिलेश शंखधर
हिंदी भाषा ही नहीं, और न सिर्फ़ ज़ुबान।
यह अपने जह हिंद के नारे की पहचान॥
हिंदी में जन्मे-पले, बड़े हुए श्रीमान।
अब इंग्लिश में कर रहे, हिंदी का अपमान॥
वायुयान में बैठकर, कैसा मिला कुयोग।
हिंदुस्तानी लोग ही, लगे विदेशी लोग॥
हिंदी इतनी है बुरी, तो फिर स्वर को खोल।
अपना हिंदी नाम भी, अंगरेज़ी में बोल॥
‘डी ओ’ “डू” तो क्या हुआ ‘जी ओ’ का उच्चार।
अंगरेजी का व्याकरण, कितना बदबूदार॥
अंगरेजी ने कर दिये, पैदा कैसे “मैड”।
माँ को कहते हैं “ममी” और पिता को “डैड”॥
टीवी की हिंदी दिखी, अंगरेजी की चोर।
भारत चुप था इण्डिया मचा रही थी शोर॥
अंगरेजी के शब्द तक, कर लेती स्वीकार।
अपने भारत देश सी, हिंदी बड़ी उदार॥
अंगरेजी के पक्षधर, अंगरेजी के भाट।
अपने हिंदुस्तान को, कहीं न जाएँ चाट॥
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