पत्रकार : चिराग़ जैन
छाप-छूप कर अख़बार
एक सनसनीबाज़ पत्रकार
रात तीन बजे घर आया
तकिये में मुँह छुपाया
और चादार तान के सो गया,
इतनी देर में उसका अख़बार
जनता के हवाले हो गया।
इधर पत्रकार चैन से
खर्राटे भर रहा था,
उधर उसका अख़बार
दुनिया की नाक में दम कर रहा था।
दोपहर की पावन बेला में
जब बिस्तर ने पत्रकार से निज़ात पाई,
तब तक पत्रकार को भूख लग आई।
पत्नी थाली लेकर आई,
तो पत्रकार ने उस पर अपनी खोजी दृष्टि घुमाई।
सबसे पहले उसने माथे से लगाई दाल,
और बड़बड़ाते हुए बोला- “धन्यवाद तरुण तेजपाल”।
फिर रोटी को करते हुए प्रणाम,
नमस्कार की मुद्रा में बोला- “जय हो बाबा आसाराम”।
देख कर थाली में वेज पुलाव,
आकाश की ओर सिर उठाकर बोला-
“धन्य हैं इस देश का साम्प्रदायिक तनाव”।
किसी ने कोई विवादास्पाद बात कही,
इसलिये थाली में शामिल हुआ दही।
फिर से बढ़ने लगा है कोई चुनावी विवाद,
तभी थाली को नसीब हुई है सलाद।
अब बस पाकिस्तान जी थोड़ी सी हैल्प कर दें,
तो बरसों से प्यासा गिलास
व्हिस्की की ख़ुश्बू से भर दें।
कुल मिलाकर
थाली में देश के सारे मुद्दे शामिल थे,
कुछ त्रासदी थे
कुछ अत्याचारी थे
और कुछ क़ातिल थे।
लेकिन पत्रकार
देखते ही देखते
सब कुछ पचा गया,
और शाम होते होते
अगले दिन की थाली सजाने
अख़बार के दफ़्तर में आ गया।
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