Sugandh lagti Ho Tum : Aatmprakash Shukla

आत्मप्रकाश शुक्ल : छंद लगती हो तुम

छंद घनानंद के, छुअन रसख़ान जैसी
शिल्प में बिहारी की सुगंध लगती हो तुम
ग़ालिब के शेर, कभी मीर की ग़ज़ल जैसी
जायसी के प्रेम का प्रबंध लगती हो तुम
अंग-अंग पे लिखा है रूप का निबंध एक
फेंकी हुई काम की कमंद लगती हो तुम
धारुवी बहाती जैसे गीत गुनगुनाती मीत
छंद क्या सुनाती ख़ुद छंद लगती हो तुम

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