Ghazal : Khwaja Meer Dard

ग़ज़ल : ख़्वाजा मीर ‘दर्द’

तोहमतें चंद अपने ज़िम्मे धर चले
जिस लिए आए थे हम सो कर चले

ज़िन्दगी है या कोई तूफ़ान है
हम तो इस जीने के हाथों मर चले

आह! मत बस जी जला, तब जानिए
जब कोई अफ़सूँ तिरा उस पर चले

हम जहाँ में आए थे तनहा, वले
साथ अपने अब उसे लेकर चले

साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाओ
जब तलक बस चल सके साग़र चले

‘दर्द’ कुछ मालूम है, ये लोग सब
किस तरफ़ से आए थे किधर चले

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