Name : Sardar Manjeet Singh
Birth : 26 July 1957
Current Location : Faridabad
Name : Sardar Manjeet Singh
Birth : 26 July 1957
Current Location : Faridabad
ज़रूरत क्या थी : हुल्लड़ मुरादाबादी
आइना उनको दिखाने की ज़रूरत क्या थी
वो हैं बन्दर ये बताने की ज़रूरत क्या थी
घर पे लीडर को बुलाने की ज़रूरत क्या थी
नाश्ता उसको कराने की ज़रूरत क्या थी
दो के झगड़े में पिटा तीसरा, चौथा बोला
आपको टांग अड़ाने की ज़रूरत क्या थी
चार बच्चों को बुलाते तो दुआएं मिलती
साँप को दूध पिलाने की ज़रूरत क्या थी
चोर जो चुप ही लगा जाता तो वो कम पिटता
बाप का नाम बताने की ज़रूरत क्या थी
जब पता था कि दिसम्बर में पड़ेंगे ओले
सर नवम्बर में मुंडाने की ज़रूरत क्या थी
अब तो रोज़ाना गिरेंगे तेरे घर पर पत्थर
आम का पेड़ लगाने की ज़रूरत क्या थी
जब नहीं पूछा किसी ने क्या थे जिन्ना क्य नहीं
आपको राय बताने की ज़रूरत क्या थी
एक शायर ने ग़ज़ल की जगह गाली पेली
उसको दस पैग पिलाने की ज़रूरत क्या थी
दोस्त जंगल में गया हाथ गँवा कर लौटा
शेर को घास खिलाने की ज़रूरत क्या थी
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले : भवानी प्रसाद मिश्र
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले,
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़नेवाले
उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खायें और गायें
वे जिसको त्यौहार कहें, सब उसे मनायें
कभी-कभी जादू हो जाता दुनिया में
दुनिया-भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गये
इनके नौकर चील, गरुड़ और बाज हो गये.
हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में
हाथ बाँधकर खड़े हो गये सब विनती में
हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगायें
पिऊ-पिऊ को छोड़ें, कौए-कौए गायें
बीस तरह के काम दे दिये गौरैयों को
खाना-पीना मौज उड़ाना छुटभैयों को
कौओं की ऐसी बन आयी पाँचों घी में
बड़े-बड़े मंसूबे आये उनके जी में
उड़ने तक के नियम बदलकर ऐसे ढाले
उड़नेवाले सिर्फ़ रह गये बैठे ठाले
आगे क्या कुछ हुआ, सुनाना बहुत कठिन है
यह दिन कवि का नहीं, चार कौओं का दिन है
उत्सुकता जग जाये तो मेरे घर आ जाना
लंबा क़िस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना ?
पाकिस्तान का बम : शरद जोशी
सुना है हमारे पाक पड़ोसी पाकिस्तान ने एक अदद एटम बम बना लिया है। बड़ी नाज़ुक सी खूबसूरत चीज़ है। अल्ला के फज़्ल से बन गया है। मरहूम जिया साहब के पास ‘आप जानते हैं’ अमरीका के अख़बार पढ़ने के अलावा कोई काम तो था नहीं। नमाज़ के अलावा वे वही पढ़ते थे। तो फुरसत में बैठे सोचा- चलो, एक एटम ही बना लें। इंशा अल्लाह काम आ गया तो ठीक, नहीं तो म्यूज़ियम में रखवा देंगे।
जैसा आप जानते हैं कि जिया साहब के रिश्ते-रसूख अड़ोसी-पड़ोसियों से चाहे इतने न हों, चोर-उचक्कों से बड़े गहरे थे। उन्होंने सबको चाय पर बुलाकर कहा- भई, एक एटम बम बनाना है। सबने कहा- बन जाएगा हुजूर। इस बार चोरी पर निकलेंगे तो एटम चुरा लाएंगे। उसमें क्या मुश्किल है।
तो साहब, पाक प्रेज़िडेंट जिया साहब के यार-दोस्त गए। किसी ने एक पुर्ज़ा इंग्लैंड से मारा, किसी ने फ्रांस से चुराया, किसी ने कनाडा से गायब किया और ले आए इस्लामाबाद। बाद एक शानदार पार्टी के, जिया साहब ने सारे उर्दू स्कूलों के साइंस पढ़ानेवालों से कहा- कम्बख्तो, अगर नौकरी करनी है तो बनाओ एटम बम। वे लोग क्लासें छोड़-छोड़ कर लग गए बम बनाने में। मार-ठोककर बना दिया।
”बन गया हुजूर। कहिए तो फोड़ कर बताएँ।“
”ख़बरदार जो यह हरकत की! यह मुल्क की शान है। हमारी पोलटिक्स की पहचान है।“ इतना कह कर जिया साहब ने एटम बम एक ट्राफी की तरह सजा कर अपने आफिस में रख लिया। झाड़ू लगाने वालों को सख्त हिदायत दी गई कि खबरदार जो इस पर झाडू फेरी।
गुज़र गए वे दिन। जब तक जिया साहब ज़िन्दा रहे, कहीं एटम बन चोरी न चला जाए, इस डर से वे हमेशा उसे अपने ओवरकोट की जेब में रखकर घूमते थे। ओवरकोट की जेब अमरीका के दर्जियों ने सी थी, इसलिए बम गिरने का कोई खतरा न था। उस पर पाक रूहों का साया बना रहे, इसलिए एक फकीर की ड्यूटी लगी थी। वह बम पर रोज़ लोहबान का धुआँ देकर मंतर पढ़ता रहता था। एक दिन बम चोरी भी चला गया था। जिया साहब तो आपे से बाहर हो गए। कुछ को हंटरों से पीटा, कुछ के हाथ काटे। मतलब इस्लाम जितनी इजाज़त दे सकता था, वो सब किया। बाद में पता लगा कि एटम बम से मुहल्ले के बच्चे खेल रहे हैं। सबको डाट लगाई, ‘खबरदार जो एटम बम को हाथ लगाया। तुम्हारे बाप से शिकायत कर दी जाएगी।’ बच्चे अब एटम बम को हाथ नहीं लगाते। उन्हें बम से ज़्यादा डर तो अपने बाप से लगता है।
एक दिन की बात है। जिया साहब ने सब हवाबाज़ों को बुलाकर कहा, ‘क्यों भई, इंडिया पर बम गिराओगे?’ सबने कहा, ‘क्या बात करते हैं, हमारा दिमाग़ ख़राब हुआ है? आपको पता नहीं हमारे मामू और चचा दोनों हिन्दुस्तान में रहते हैं।’
एक दिन तो जिया साहब इतने गुस्से में आ गए कि चीख कर बोले, ‘कम्बख्तो, अगर तुम हवाई जहाज से जाकर हिन्दुस्तान पर बम नहीं गिरा सकते तो भाड़ में जाओ। हम ट्रेन से जाकर एटम बम गिरा देंगे।’
कुछ लोग कहते हैं कि पाकिस्तान का यह बम हायड्रोजन बम है। दरअसल खुद पाकिस्तान को ही नहीं पता था कि ये हायड्रोजन है कि आक्सीजन। वे उसे प्यार से इस्लामिक बम कहते थे। उम्मीद यह थी कि जैसे ही यह फूटा तो चारों ओर इस्लाम फैल जाएगा। मरहूम जिया साहब जब तक ज़िन्दा रहे हिन्दुस्तान पर एटम बम गिराने की उम्मीद पाले रहे। उनकी प्राॅब्लम यह थी कि एक तो उनके पास अच्छे हवाई जहाज नहीं थे। जो थे तो अच्छे चलानेवाले नहीं थे। चलानेवालों से निशाना ठीक नहीं बैठता था। डर यह रहा कि दिल्ली पर डालने जाएं और लाहौर पर आ गिरे तो क्या करेंगे।
यही उम्मीद रखे पाक प्रेज़िडेन्ट जिया साहब अल्लाह को प्यारे हुए। एक दिन वे हवाई जहाज से जा रहे थे। अमेरिका का एंबेसडर भी उनके साथ था। जिया साहब कोट की जेब से एटम बम निकाल, हाथ पर उछाल-उछाल कर एंबेसेडर को बताने लगे, ‘बोलो, कितने डालर में खरीदते हो? जोरदार चीज है।’ तभी वह एटम बम हाथ से फिसल गया। ज़्यादा नुकसान तो नहीं हुआ। हवाई जहाज टूट गया और जिया साहब मर गए। चाहे एटम हो, बम तो बम ठहरा।
आजकल आप जानते हैं पाकिस्तान में बेनज़ीर की हुकूमत है। बेचारी बड़ी परेशान है। जिस तरह उल्लू मरते हैं और औलादें छोड़ जाते हैं उसी तरह जिया साहब मर गए और बेनजीर के नाम पर अपने एटम बम छोड़ गए हैं। मोहतरमा परेशान हैं। दो बच्चे, एक गवर्नमेंट और छह एटम बम। अकेली जान बेचारी क्या-क्या उठाए।
एक दिन उन्हें परेशान देख अपोजिशन वालों ने आवाज़ लगाई, ‘कुछ वज़न हम भी उठा लें मैडम, कभी मौका तो दीजिए।’
‘थैंक्स, आप रहने दीजिए। हम अपना भारी वज़न खुद उठाना जानती हैं।’ -बेनज़ीर बोली।
बेनज़ीर के मिया ज़रदारी ज़रा भारी-भरकम हैं। वै चैंके। कहीं यह ताना हम पर तो नहीं कसा जा रहा। वे बोले- ‘लाओ, एक बच्चा हमें दे दो।’ माँ नुसरत भुट्टो पास खड़ी थी। बोली- ‘ला बेटी, गवर्मेन्ट मुझे दे दे।’ अब बेनज़ीर के पास छह एटम बम रह गए। जिया साहब के नाम को रोती हाथ में लिए खड़ी है।
एक फौजी आए। बोले- ‘लाइये, ये एटम बम हमें दे दीजिए, हिन्दुस्तान पर डाल आते हैं।’ बेनज़ीर ने कहा, ‘आप होश में तो हैं! सुना इंडिया के पास बारह एटम बम हैं। इन छह के बदले कहीं उन्होंने बारह हम पर डाल दिए तो पाकिस्तान में तो बर्बाद होने के लिए भी उतनी जगह नहीं।’
फिर एक मौलवी आए। कहने लगे, ‘एटम बम तो अल्लाह की देन है। लाइए, एक मस्जिद में रखवा देते हैं। कभी इस्लाम यानी मुल्क खतरे में आया तो इस पर हाथ रख फतवा जारी करेंगे।’ बेनज़ीर ने कहा, ‘बख्शिये। साइंस का मामला है। रिलीजन को इस बीच में न डालिए।’
इस पर केबिनेट बुलाई गई। एक इकानामिस्ट ने कहा, ‘एटम बम एक्सपोर्ट कर चंद डालर कमाए जाएं तो कश्मीर फ्रंट पर फौज के लिए गरम कपड़े बन जाएंगे।’ पाकिस्तान के एक शायर ने एटम बम पर ग़ज़ल लिखी है। क्रिटिक्स का कहना है कि इसमें एटम का मतलब बेनज़ीर है।
एक ने कहा, ‘एक एटम बम इमरान ख़ान को दे दीजिए। बच्चे का हौसला बढ़ जाएगा। इन दिनों अच्छा खेल रहा है।’
बेनज़ीर को समझ नहीं आ रहा कि वह अपने आधा दर्जन एटम बमों का क्या करे। भारत तो है नहीं जो ऐसे नाजुक मामले नज़रअंदाज़ कर जाए। अब है तो रुआब तो करेंगी ही। कुछ दिन पहले पाकिस्तानी महिलाओं की मीटिंग में कहा कि अगर मुल्क ने एटम बम के मामले में ऐसी प्रोग्रेस की तो बड़ी जल्दी लाहौर और कराची के बाज़ार में एटम की साॅस, एटम का अचार और एटम के मुरब्बे मिलने लग जाएंगे।
जो भी हो। यह ख़ुशी की बात है कि एटम के मामले में जो भी प्रोग्रेस होती है, पाकिस्तान रेडियो उसकी खबरें देता रहता है। जैसे परसों खबर थी-
‘रेडियो पाकिस्तान के एक नुमायन्दे को आज यह बताया गया कि आगे से एटम बम पर चिड़िया का घोसला नहीं बनने दिया जाएगा।’
कल-
‘यह खबर सरासर झूठ और अफवाह है कि पाकिस्तान ने जो दो नए एटम बम पिछले दिनों बनाए थे, उन्हें चूहे कुतर गए।’
‘हेल्थ डिपार्टमेंट के एक बुलेटिन में बताया गया है कि इन दिनों पाकिस्तान के साइंसदां एटमबम के घोल से मच्छर मारने की दवाई बनाने की कोशिश में लगे हैं।’
‘एटम बमों पर एटम लगा दिया गया है ताकि एटम बम रखा हो तो लोग दूरी से चलें।’
ख़बरें खत्म हुईं, साथ ही एटम बम भी खत्म हो गया।
रोज़ पीने का बहाना चाहिए : हुल्लड़ मुरादाबादी
हौसलों हो आज़ामाना चाहिए
मुश्किलों में मुस्कुराना चाहिए
खुजलियाँ जब सात दिन तक ना रुकें
आदमी को तब नहाना चाहिए
साँप नेता साथ में मिल जाएं तो
लट्ठ नेता पर चलाना चाहिए
सिर्फ चारे से तसल्ली कर गए
आपको तो देश खाना चाहिए
जो इलेक्शन हार जाए क्या करे
तिरुपति में सिर मुंडाना चाहिए
हाथ ही केवल मिलाए आज तक
दोस्ती में दिल मिलाना चाहिए
आज फीवर कल थकावट हो गई
रोज़ पीने का बहाना चाहिए
आशिकी में बाप जब बेहोश हो
पुत्र को जूता सुंघाना चाहिए
नींद आती ही नहीं जिस शख्स को
टेप हुल्लड़ का सुनाना चाहिए
क्या करेगी चांदनी : हुल्लड़ मुरादाबादी
चांद औरों पर मरेगा, क्या करेगी चांदनी
प्यार में पंगा करेगा, क्या करेगी चांदनी
चांद से है ख़ूबसूरत, भूख में दो रोटियां
कोई बच्चा जब मरेगा, क्या करेगी चांदनी
डिगरियां हैं बैग में पर जेब में पैसा मरेगा
नौजवां फाके करेगा, क्या करेगी चांदनी
लाख तुम फसलें उगा लो एकता की देश में
इसको जब नेता चरेगा, क्या करेगी चांदनी
जो बचा था ख़ून वो तो, सब सियासत पी गई
ख़ुदकुशी खटमल करेगा, क्या करेगी चांदनी
दे रहे चालीस चैनल, नंगई आकाश से
चांद इसमें क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी
चांद ऐसे लग रहा जो, फाँक हो तरबूज की
पेट में राहु धरेगा, क्या करेगी चांदनी
क्या करेगा पूर्णिमा का चांद तेरे वास्ते
आगरा भरती करेगा, क्या करेगी चांदनी
लीडरों पर मत लिखो तुम बाद में पछताओगे
जब वही नेता मरेगा, क्या करेगी चांदनी
साँड है पंचायती ये मत कहो नेता इसे
देश को पूरा चरेगा, क्या करेगी चांदनी
एक बुलबुल कर रही है आशिक़ी सैयाद से
शर्म से माली मरेगा, क्या करेगी चांदनी
रोज़ डयूटी दे रहा है, एक भी छुट्टी नहीं
सूर्य को जब फ्लू धरेगा, क्या करेगी चांदनी
गौर से देखा तो पाया, प्रेमिका के मूँछ थी
अब ये ‘हुल्लड़’ क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी
पेड़ के नीचे पड़ा है एक गंजा छाँव में
नारियल सर पे झरेगा, क्या करेगी चांदनी
नोट नेता ने विदेशी बैंक में भिजवा दिये
आयकर अब क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी
कैश में दस लाख खींचे पार्टी से ख़र्च को
पाँच ये घर पर धरेगा, क्या करेगी चांदनी
मुफ़लिसी में एक शायर भीख मांगेगा नहीं
भूख से चाहे मरेगा, क्या करेगी चांदनी
ईश्वर ने सब दिया पर आज का ये आदमी
शुक्रिया तक ना करेगा, क्या करेगी चांदनी
धन अगर इसने बताया पार्टी के कोश का
ये तो सबको ले मरेगा, क्या करेगी चांदनी
माल जो अंदर किया है, इन लीडरों ने
वक्त सब बाहर करेगा, क्या करेगी चांदनी
एक शायर पी-पिलाकर मंच पर ही सो गया
जब ये खर्राटे भरेगा, क्या करेगी चांदनी
एक रचना को कहा था, बीस कविता पेल दी
ऊब कर श्रोता मरेगा, क्या करेगी चांदनी
ख़ून बोलता है : अरुण जैमिनी
सीमा पर जैसे ही छिड़ी लड़ाई
देशभक्ति की भावना
सब में उमड़ आई
कुर्बानी का कुछ ऐसा चढ़ा जुनून
कि घायल सैनिकों के लिए
सभी देने लगे अपना-अपना ख़ून
नेता हो या व्यापारी
कवि हो या भिखारी
खिलाड़ी हो या संगीतकार
अध्यापक हो या बेरोज़गार
तरह-तरह के लोगों का
जब घायल सैनिकों में ख़ून चढ़ा
तो सबका प्रभाव अलग-अलग पड़ा
एक भिखारी का ख़ून
जब सैनिक के शरीर में गरमाया
तो वो दुश्मन का
गिरेबान पकड़ कर गिड़गिड़ाया-
‘ज़रा इस तरफ़ भी ध्यान दे दे
दे दे ….अल्लाह के नाम पे
अपनी जान दे दे।’
इतना कह कर जैसे ही उसने जान ली
तो दूसरे दुश्मन ने
उसकी नीयत फ़ौरन पहचान ली
वो वापिस नियंत्रण-रेखा की तरफ़ भाग चला
हमारा सैनिक बोला-
‘जो दे उसका भी भला
…जो ना दे उसका भी भला।’
कवि का ख़ून चढ़वाये सैनिक ने
जब दुश्म को अपने चंगुल में फँसाया
तो दुश्मन गिड़गिड़ाया-
‘माफ़ कर दो, माफ़ कर दो’
सैनिक बोला-
‘जाओ, तुम्हें माफ़ किया।’
इतना कहकर पहले तो उसने
बन्दूक की नाल साफ़ करने वाले ब्रश से
दुश्मन का कान साफ़ किया
फिर अपनी कविताओं का बारूदी पुलिंदा
बन्दूक की जगह अपनी ज़ुबान में भरा
और दाग़ दिये
बारह दोहे
चौबीस कविताएँ
और छत्ताीस चौपाई
और जब तक उसके प्राण नहीं निकले
उससे तालियाँ बजवाईं।
एक सैनिक को जिसका ख़ून चढ़ा था
वो था व्यापारी
दुश्मनों की गोलियाँ ख़त्म होते ही
उसने उन्हें अपनी गोलियाँ
ब्लैक में बेच दीं सारी
इसके बावजूद पूरी घाटी
दुश्मनों की लाशों से पटी थी
क्योंकि हमारे सैनिक ने
जो गोलियाँ बेचीं, वो सारी मिलावटी थीं
वाह रे व्यापारी
हर तरह से इज़ाफ़ा ही इज़ाफ़ा
जीत की जीत
और मुनाफ़े का मुनाफ़ा।
अध्यापक के ख़ून वाला सैनि
निहत्था ही दुश्मन के बंकर में आया
एक का कान मरोड़ते हुए गुर्राया-
‘अच्छा… मेरे पीरियड में आधी क्लास भाग गई।
तुम सब
इस क्लास में कहाँ से आ घुसे
तुम सबके नाम तो इस स्कूल से
सन् सैंतालीस में ही कट चुके
और क्या है ये …बंकर
याद करो सन् इकहत्तार
जब हमने चमत्कार दिखाया था
नब्बे हज़ार नालायकों से
एक साथ कान पकड़वाया था
अबे मूर्ख़
हम सारे देश के चहेते हैं
इतिहास पढ़ाते-पढ़ाते
भूगोल बदल देते हैं।
सुनो, ये बन्दूक यहाँ से हटाओ
जाओ, किसी पेड़ पर से
एक मोटी डंडी तोड़ कर लाओ
पूरी चोटी पर उधम मचा रखा है
फ़ौरन मुर्गा बन जाओ
और मुर्गा बने-बने ही
अपने ख़ून से
चालीस बार जय-हिन्द लिख कर दिखाओ।
तुम्हें बन्दूक में
न गोली भरनी आती है
न चलानी आती है
कुछ दिन मेरे घर टयूशन पढ़ने आओ।’
एक फिल्म अभिनेता का ख़ून चढ़े सैनिक से
अफ़सर ने कहा- ‘निशाना लगाओ’
सैनिक बोला- ‘पहले कैमरा मैन बुलवाओ
और लाइट जलाओ।’
अफ़सर बोला- ‘लाइट जलवा के मरवाएगा?’
तो सैनिक ने कहा- ‘मुझे मौत का डर मत दिखाओ
ये काम मैं पहले भी कर चुका हूँ
अब से पहले
पन्द्रह फिल्मों में पचास बार मर चुका हूँ।’
अफ़सर चौंका- ‘पन्द्रह फिल्मों में पचास बार!
ऐसा तूने क्या करा था?’
सैनिक बोला- ‘क्यों!
रीटेक में क्या तेरा बाप मरा था?’
फिल्मोनिया से ग्रस्त व्यक्ति के ख़ून ने
और कमाल दिखाया
आगे बढ़ते दुश्मन को देखते ही चिल्लाया-
‘जानी! तुम्हारे पाँव देखे
बहुत गन्दे हैं
इन वादियों से घिन्न आएगी
इन्हें हमारी ज़मीन पर मत रखना
ज़मीन मैली हो जाएगी।’
एक सैनिक का
बहुत ही मज़बूत था कांधा
उसने चार दुश्मनों का
एक गट्ठर-सा बांधा
उठाया, पीठ पर लटकाया
और सारे युध्द-क्षेत्र का
नक्शा बदल दिया
जब वो पाँचवें दुश्मन को
एक हाथ में पानी की बोतल की तरह
लटका कर चल दिया।
सब हैरान, परेशान
खा गए गच्चा
लेकिन ये क़िस्सा है सच्चा
क्योंकि उस सैनिक को
ख़ून देकर आया था
एक स्कूल का बच्चा।
एक सैनिक को
ग़लती से एक नेता का ख़ून चढ़ गया
ठीक होते ही वो
फ्रंट की बजाय
दिल्ली की ओर बढ़ गया
उसे फ्रंट पर जाने के लिए समझाया
तो वो भुनभुनाया-
‘मेरी तो तबीयत खारी हो गई
तुम फ्रंट की बात कर रहे हो
उधर चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई।
मैं बसपा में चला जाऊँगा
पर नेशनल फ्रंट में नहीं जाऊँगा।’
उसे ‘फ्रंट’ का सही मतलब समझाया गया
और सीधा कारगिल भिजवाया गया
तोपों को देखते ही उसका कलेजा हिला-
‘अच्छा, यही है वो बोफ़ोर्स तोप
जिसका कमीशन मुझे आज तक नहीं मिला।
चल छोड़
अभी इस चक्कर में क्या पड़ना है’
फिर अफ़सर से बोला- ‘अच्छा बताओ
मुझे किस चुनाव क्षेत्र से लड़ना है?’
अफ़सर ने कहा- ‘द्रास’
वो बोला- ‘क्या कहा मद्रास
मुझे उत्तार भारत में कहीं से भी लड़ा दो’
अफ़सर गुस्से में बोला-
‘इसे सीधा टाइगर हिल पर चढ़ा दो’
वो सिरफिरा
चढ़ते-चढ़ते कई बार गिरा
रास्ते में जहाँ भी
दो-चार सैनिक दिखें
वहीं रस्सी छोड़ दे
और वोट माँगने के लिए
दोनों हाथ जोड़ दे।
ख़ैर …सारे रास्ते उसने
ख़ूब आश्वासन दिये
ख़ूब वायदे किये
ख़ूब भाषण पिलाया
और इसीलिए
टाइगर हिल पर चढ़ ही नहीं पाया।
वो तो शुक्र है
इस दौरान ही बंद हो गई लड़ाई
वरना पता नहीं क्या गुल खिलाता भाई
लेकिन मैं कहता हूँ
कुछ ऐसा इंतज़ाम हो जाए
नेताओं का ख़ून सैनिकों को नहीं
सैनिकों का ख़ून नेताओं को चढ़वया जाए
ताकि उनमें भी
भारत माँ के सच्चे सपूतों का रक्त हो
कोई ढूंढने से भी देशद्रोही न मिले
हर नेता देशभक्त हो।
जागो फिर एक बार : सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
जागो फिर एक बार!
समर अमर कर प्राण
गान गाये महासिन्धु से सिन्धु-नद-तीरवासी!
सैन्धव तुरंगों पर चतुरंग चमू संग;
”सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊंगा
गोविन्द सिंह निज नाम जब कहाऊंगा”
किसने सुनाया यह
वीर-जन-मोहन अति दुर्जय संग्राम राग
फाग का खेला रण बारहों महीने में
शेरों की मांद में आया है आज स्यार
जागो फिर एक बार!
सिंहों की गोद से छीनता रे शिशु कौन
मौन भी क्या रहती वह रहते प्राण?
रे अनजान
एक मेषमाता ही रहती है निर्मिमेष
दुर्बल वह
छिनती सन्तान जब
जन्म पर अपने अभिशप्त
तप्त आँसू बहाती है;
किन्तु क्या
योग्य जन जीता है
पश्चिम की उक्ति नहीं
गीता है गीता है
स्मरण करो बार-बार
जागो फिर एक बार
एक स्वर मेरा मिला लो : सोहनलाल द्विवेदी
वंदना के इन स्वरों में
एक स्वर मेरा मिला लो!
राग में जब मत्त झूलो
तो कभी माँ को न भूलो
अर्चना के रत्नकण में
एक कण मेरा मिला लो!
जब हृदय का तार बोले
शृंखला के बंद खोले
हों जहाँ बलि शीश अगणित
एक शिर मेरा मिला लो!
वंदना के इन स्वरों में
एक स्वर मेरा मिला लो!