ख़ून बोलता है : अरुण जैमिनी
सीमा पर जैसे ही छिड़ी लड़ाई
देशभक्ति की भावना
सब में उमड़ आई
कुर्बानी का कुछ ऐसा चढ़ा जुनून
कि घायल सैनिकों के लिए
सभी देने लगे अपना-अपना ख़ून
नेता हो या व्यापारी
कवि हो या भिखारी
खिलाड़ी हो या संगीतकार
अध्यापक हो या बेरोज़गार
तरह-तरह के लोगों का
जब घायल सैनिकों में ख़ून चढ़ा
तो सबका प्रभाव अलग-अलग पड़ा
एक भिखारी का ख़ून
जब सैनिक के शरीर में गरमाया
तो वो दुश्मन का
गिरेबान पकड़ कर गिड़गिड़ाया-
‘ज़रा इस तरफ़ भी ध्यान दे दे
दे दे ….अल्लाह के नाम पे
अपनी जान दे दे।’
इतना कह कर जैसे ही उसने जान ली
तो दूसरे दुश्मन ने
उसकी नीयत फ़ौरन पहचान ली
वो वापिस नियंत्रण-रेखा की तरफ़ भाग चला
हमारा सैनिक बोला-
‘जो दे उसका भी भला
…जो ना दे उसका भी भला।’
कवि का ख़ून चढ़वाये सैनिक ने
जब दुश्म को अपने चंगुल में फँसाया
तो दुश्मन गिड़गिड़ाया-
‘माफ़ कर दो, माफ़ कर दो’
सैनिक बोला-
‘जाओ, तुम्हें माफ़ किया।’
इतना कहकर पहले तो उसने
बन्दूक की नाल साफ़ करने वाले ब्रश से
दुश्मन का कान साफ़ किया
फिर अपनी कविताओं का बारूदी पुलिंदा
बन्दूक की जगह अपनी ज़ुबान में भरा
और दाग़ दिये
बारह दोहे
चौबीस कविताएँ
और छत्ताीस चौपाई
और जब तक उसके प्राण नहीं निकले
उससे तालियाँ बजवाईं।
एक सैनिक को जिसका ख़ून चढ़ा था
वो था व्यापारी
दुश्मनों की गोलियाँ ख़त्म होते ही
उसने उन्हें अपनी गोलियाँ
ब्लैक में बेच दीं सारी
इसके बावजूद पूरी घाटी
दुश्मनों की लाशों से पटी थी
क्योंकि हमारे सैनिक ने
जो गोलियाँ बेचीं, वो सारी मिलावटी थीं
वाह रे व्यापारी
हर तरह से इज़ाफ़ा ही इज़ाफ़ा
जीत की जीत
और मुनाफ़े का मुनाफ़ा।
अध्यापक के ख़ून वाला सैनि
निहत्था ही दुश्मन के बंकर में आया
एक का कान मरोड़ते हुए गुर्राया-
‘अच्छा… मेरे पीरियड में आधी क्लास भाग गई।
तुम सब
इस क्लास में कहाँ से आ घुसे
तुम सबके नाम तो इस स्कूल से
सन् सैंतालीस में ही कट चुके
और क्या है ये …बंकर
याद करो सन् इकहत्तार
जब हमने चमत्कार दिखाया था
नब्बे हज़ार नालायकों से
एक साथ कान पकड़वाया था
अबे मूर्ख़
हम सारे देश के चहेते हैं
इतिहास पढ़ाते-पढ़ाते
भूगोल बदल देते हैं।
सुनो, ये बन्दूक यहाँ से हटाओ
जाओ, किसी पेड़ पर से
एक मोटी डंडी तोड़ कर लाओ
पूरी चोटी पर उधम मचा रखा है
फ़ौरन मुर्गा बन जाओ
और मुर्गा बने-बने ही
अपने ख़ून से
चालीस बार जय-हिन्द लिख कर दिखाओ।
तुम्हें बन्दूक में
न गोली भरनी आती है
न चलानी आती है
कुछ दिन मेरे घर टयूशन पढ़ने आओ।’
एक फिल्म अभिनेता का ख़ून चढ़े सैनिक से
अफ़सर ने कहा- ‘निशाना लगाओ’
सैनिक बोला- ‘पहले कैमरा मैन बुलवाओ
और लाइट जलाओ।’
अफ़सर बोला- ‘लाइट जलवा के मरवाएगा?’
तो सैनिक ने कहा- ‘मुझे मौत का डर मत दिखाओ
ये काम मैं पहले भी कर चुका हूँ
अब से पहले
पन्द्रह फिल्मों में पचास बार मर चुका हूँ।’
अफ़सर चौंका- ‘पन्द्रह फिल्मों में पचास बार!
ऐसा तूने क्या करा था?’
सैनिक बोला- ‘क्यों!
रीटेक में क्या तेरा बाप मरा था?’
फिल्मोनिया से ग्रस्त व्यक्ति के ख़ून ने
और कमाल दिखाया
आगे बढ़ते दुश्मन को देखते ही चिल्लाया-
‘जानी! तुम्हारे पाँव देखे
बहुत गन्दे हैं
इन वादियों से घिन्न आएगी
इन्हें हमारी ज़मीन पर मत रखना
ज़मीन मैली हो जाएगी।’
एक सैनिक का
बहुत ही मज़बूत था कांधा
उसने चार दुश्मनों का
एक गट्ठर-सा बांधा
उठाया, पीठ पर लटकाया
और सारे युध्द-क्षेत्र का
नक्शा बदल दिया
जब वो पाँचवें दुश्मन को
एक हाथ में पानी की बोतल की तरह
लटका कर चल दिया।
सब हैरान, परेशान
खा गए गच्चा
लेकिन ये क़िस्सा है सच्चा
क्योंकि उस सैनिक को
ख़ून देकर आया था
एक स्कूल का बच्चा।
एक सैनिक को
ग़लती से एक नेता का ख़ून चढ़ गया
ठीक होते ही वो
फ्रंट की बजाय
दिल्ली की ओर बढ़ गया
उसे फ्रंट पर जाने के लिए समझाया
तो वो भुनभुनाया-
‘मेरी तो तबीयत खारी हो गई
तुम फ्रंट की बात कर रहे हो
उधर चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई।
मैं बसपा में चला जाऊँगा
पर नेशनल फ्रंट में नहीं जाऊँगा।’
उसे ‘फ्रंट’ का सही मतलब समझाया गया
और सीधा कारगिल भिजवाया गया
तोपों को देखते ही उसका कलेजा हिला-
‘अच्छा, यही है वो बोफ़ोर्स तोप
जिसका कमीशन मुझे आज तक नहीं मिला।
चल छोड़
अभी इस चक्कर में क्या पड़ना है’
फिर अफ़सर से बोला- ‘अच्छा बताओ
मुझे किस चुनाव क्षेत्र से लड़ना है?’
अफ़सर ने कहा- ‘द्रास’
वो बोला- ‘क्या कहा मद्रास
मुझे उत्तार भारत में कहीं से भी लड़ा दो’
अफ़सर गुस्से में बोला-
‘इसे सीधा टाइगर हिल पर चढ़ा दो’
वो सिरफिरा
चढ़ते-चढ़ते कई बार गिरा
रास्ते में जहाँ भी
दो-चार सैनिक दिखें
वहीं रस्सी छोड़ दे
और वोट माँगने के लिए
दोनों हाथ जोड़ दे।
ख़ैर …सारे रास्ते उसने
ख़ूब आश्वासन दिये
ख़ूब वायदे किये
ख़ूब भाषण पिलाया
और इसीलिए
टाइगर हिल पर चढ़ ही नहीं पाया।
वो तो शुक्र है
इस दौरान ही बंद हो गई लड़ाई
वरना पता नहीं क्या गुल खिलाता भाई
लेकिन मैं कहता हूँ
कुछ ऐसा इंतज़ाम हो जाए
नेताओं का ख़ून सैनिकों को नहीं
सैनिकों का ख़ून नेताओं को चढ़वया जाए
ताकि उनमें भी
भारत माँ के सच्चे सपूतों का रक्त हो
कोई ढूंढने से भी देशद्रोही न मिले
हर नेता देशभक्त हो।
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