Category Archives: Hasya Kavi Sammelan

Itihaas Ka Parcha : Omprakash Aditya

इतिहास का पर्चा : ओमप्रकाश ‘आदित्य’

इतिहास परीक्षा थी उस दिन, चिंता से हृदय धड़कता था
थे बुरे शकुन घर से चलते ही, दाँया हाथ फड़कता था

मैंने सवाल जो याद किए, वे केवल आधे याद हुए
उनमें से भी कुछ स्कूल तकल, आते-आते बर्बाद हुए

तुम बीस मिनट हो लेट द्वार पर चपरासी ने बतलाया
मैं मेल-ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया

पर्चा हाथों में पकड़ लिया, ऑंखें मूंदीं टुक झूम गया
पढ़ते ही छाया अंधकार, चक्कर आया सिर घूम गया

उसमें आए थे वे सवाल जिनमें मैं गोल रहा करता
पूछे थे वे ही पाठ जिन्हें पढ़ डाँवाडोल रहा करता

यह सौ नंबर का पर्चा है, मुझको दो की भी आस नहीं
चाहे सारी दुनिय पलटे पर मैं हो सकता पास नहीं

ओ! प्रश्न-पत्र लिखने वाले, क्या मुँह लेकर उत्तर दें हम
तू लिख दे तेरी जो मर्ज़ी, ये पर्चा है या एटम-बम

तूने पूछे वे ही सवाल, जो-जो थे मैंने रटे नहीं
जिन हाथों ने ये प्रश्न लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं

फिर ऑंख मूंदकर बैठ गया, बोला भगवान दया कर दे
मेरे दिमाग़ में इन प्रश्नों के उत्तर ठूँस-ठूँस भर दे

मेरा भविष्य है ख़तरे में, मैं भूल रहा हूँ ऑंय-बाँय
तुम करते हो भगवान सदा, संकट में भक्तों की सहाय

जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया तुमने ही उसे बचाया था
जब द्रुपद-सुता की लाज लुटी, तुमने ही चीर बढ़ाया था

द्रौपदी समझ करके मुझको, मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम
मैं विष खाकर मर जाऊंगा, वर्ना जल्दी आ जाओ तुम

आकाश चीरकर अंबर से, आई गहरी आवाज़ एक
रे मूढ़ व्यर्थ क्यों रोता है, तू ऑंख खोलकर इधर देख

गीता कहती है कर्म करो, चिंता मत फल की किया करो
मन में आए जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो

मेरे अंतर के पाट खुले, पर्चे पर क़लम चली चंचल
ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल

मैंने लिक्खा पानीपत का दूसरा युध्द भर सावन में
जापान-जर्मनी बीच हुआ, अट्ठारह सौ सत्तावन में

लिख दिया महात्मा बुध्द महात्मा गांधी जी के चेले थे
गांधी जी के संग बचपन में ऑंख-मिचौली खेले थे

राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था
अकबर ने हिंद महासागर, अमरीका से मंगवाया था

महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था
औरंगजेब रंग में आकर औरों की जेब काटता था

इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे
जो-जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे पर लिख मारे

हो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख-देख
बोला- इन सारे छात्रों में, बस होनहार है यही एक

औरों के पर्चे फेंक दिए, मेरे सब उत्तर छाँट लिए
जीरो नंबर देकर बाकी के सारे नंबर काट लिए

Gavaskar Ne Record Toda : SHARAD JOSHI

गावस्कर ने रेकार्ड तोड़ा : शरद जोशी

जब गावस्कर ने ब्रेडमेन का रेकार्ड तोड़ा, देश के कई खिलाड़ियों ने अपने आप से एक सवाल किया- यह काम मैंने क्यों नहीं किया? मैंने क्यों नहीं तोड़ा ब्रेडमेन का रेकार्ड? यह प्रश्न अपने आप से पूछने वालों में एक मैं भी हूँ। क्यों शरद, जो काम गावस्कर ने किया वह तुमने क्यों नहीं किया?
कारण व्यक्तिगत है। मैं क्या कहूँ कि यह निष्ठुर समाज दोषी है जिसने मुझे गावस्कर नहीं बनने दिया। सच यह है कि पिच पर बल्ला हाथ में लिए, एक या दो रन बनाने के बाद मैं हेमलेट हो जाता था। सामने से बाल आती। मैं मन ही मन सोचता, टु बी आर नाट टू बी, पीटूँ कि नहीं पीटूँ। एक-दो रन बनाकर ही स्वयं से प्रश्न करने लगता- शरद तुम कहाँ हो? क्या कर रहे हो? सामने खड़े लोगों में कौन तुम्हारा मित्र है और कौन शत्रु?
क्रिकेट के मैदान में बल्ला लिये खड़े मुझे विश्वास नहीं होता कि जो मेरे सामने तन कर बल्ला लिये खड़ा है, वह तो मेरा साथी है। और जो ठीक पीछे नम्र मुद्रा में पीठ झुकाए खड़ा है वह मेरा प्राणघाती शत्रु है। ज़रा सोचिये, जो मित्र है वह सामने खड़ा है। जो शत्रु है वह पीठ के पीछे है। मेरे रनआउट होने के लिए मित्रो, इतना ही काफी है।
चारों तरफ फील्डर्स खड़े हैं। मुझे लगता, मेरे प्रशंसक खड़े हैं। वे बड़ी अपेक्षा से मेरी ओर देखते कि मैं गेंद को हिट करूंगा। मैं उत्साह में कर भी देता और वे कैच ले लेते। कर्म की प्रेरणा से बड़ा घोटाला हो जाता था मित्रो! जिन्हें मैं अपना समझता था, वे पराये निकलते। मुझमें एक और मानवीय गुण था। मैं गेंद को हिट करने के बाद दौड़ता नहीं था। अपनी पीटी गेंद को दूर तक जाते देखना मुझे अच्छा लगता था। ऐसे सुन्दर और सुहाने दृश्य को विकेट के बीच दौड़ कर गँवाना मुझे अच्छा नहीं लगता था। चारों तरफ से लोग चिल्लाते- दौड़ उल्लू, दौड़। मगर एक सुंदर गेंद को दूर तक जाते देखना कितना सुखद होता है, यह तो मुझ जैसा व्यक्ति ही समझ सकता है, जो बल्लेबाज होने का साथ अच्छा दर्शक भी था।
वे भी क्या दिन थे! धुआँधार नान-स्टाप क्रिकेट होता था। क्रिकेट अनिश्चितता का खेल है, यह बात सारा मुहल्ला जानता था। सुबह जब हम खेलने उतरते थे तो कोई नहीं जानता था कि किसकी खिड़की का काँच फूटेगा, किसके कंधे पर गेंद लगेगी। अच्छे क्रिकेट के लिए घर के सामने सड़क जितनी चैड़ी होनी चाहिए थी, उतनी थी नहीं। इसका लाभ भी था। गावस्कर जितनी दूरी तक गेंद मारकर एक रन बनाता है, उतने में हम चार बना लेते। विकेट के बीच की दूरी भी कम थी। आख़िर विकेटकीपर के खड़े रहने के लिए भी तो कुछ जगह निकालनी थी। वो क्या पीछे नाली में खड़ा रहता?
ब्रेडमेन का रेकार्ड मेरे द्वारा तोड़े जाने का सवाल ही नहीं था। हमारी टीम में बुधवार को कितने स्कोर बनाए थे, गुरुवार को याद नहीं रहता था। अगर मैं कहूँ कि अमुक दिन सेंचुरी बनाई तो सब कहते थे- तुमने कभी सेंचुरी नहीं बनाई। आरंभिक संघर्ष के दिन थे। मेरे लिए तो वे ही अंतिम थे।
अंपायर से मेरे संबंध कभी अच्छे नहीं रहे। वो मेरा बेटा इसी उतावली में रहता कि कब मैं आउट होऊँ तो कब वह उंगली उठाए। वह बालर को कभी नहीं कहता था कि टाइट गेंद मत फेंक। भई, रन नहीं बनाने देना है तो मुझे बुलाया ही क्यों? मुझे समूची व्यवस्था अपने विरोध में खड़ी जान पड़ती थी। मैं बल्ला हाथ में ले उस तंत्र के सामने स्वयं को बड़ा अकेला और असहाय अनुभव करता था।
अपनी निगाह में मैं अच्छा ओपनर था। मगर हमारी टीम में सभी अपनी निगाह में अपने को अच्छा ओपनर समझते थे। कई बार खेल इसीलिए देर तक शुरू नहीं हो पाता था कि ओपन कौन करेगा। मेरी विशेषता यह थी कि रन चाहे न बना पाऊँ, एक बार ओपनर हो जाने के बाद मेरा क्लोज़ होना मुश्किल हो जाता था। क्रिकेट की भाषा में जिसे कहें- एक छोर पर जमे रहना। मैं दोनों छोर पर जमा रहता। जब सामने वाला खिलाड़ी सिंगल बनाता, तभी मैं यह छोर छोड़ता। जाकर दूसरे पर खड़ा हो जाता।
मुझमें और गावस्कर में खिलाड़ी के नाते बड़ा फर्क है। वह नई बाल पर आउट हो जाता है, मैं पुरानी पर ही हो जाता हूँ। कई बार वह नई पर भी नहीं होता। मैंने तो नई बाल ओपनर होने को बावजूद नहीं देखी। हमारे मुहल्ले में एक ही बाल थी, जिसे हम निरंतर अपनी पतलून पर घिसकर चमक बनाए रखते थे। पतलून चमकने लगता था, बाल फिर भी नहीं चमकती थी।
आज सभी खिलाड़ी अपने आप से पूछते हैं कि मैंने ब्रेडमेन का रेकार्ड क्यों नहीं तोड़ा? ब्रेडमेन तो विदेशी था। उसका रेकार्ड तोड़ना कठिन था। गावस्कर तो इसी देश का है। उसी का तोड़ कर बताओ। सच यह है कि हम जिस लुग्दी के बने हैं उस पर सिर्फ कविता संकलन छप सकते हैं, नेताओं के भाषण छप सकते हैं। अप्लीकेशन लिखी जा सकती है। अगर हम वे रेकार्ड तोड़ सकते तो भारतीय प्रजातंत्र की कई समस्याएँ भी सुलझा लेते।

Jeetne ke baad Baazi haarte Rahe : Aatm Prakash Shukla

जीतने के बाद बाज़ी हारते रहे : आत्मप्रकाश शुक्ल

चीन छीन देश का गुलाब ले गया
ताशकंद में वतन का लाल सो गया
हम सुलह की शक्ल ही सँवारते रहे
जीतने के बाद बाज़ी हारते रहे

सैंकड़ों हमीद ईद पे नहीं मिले
ज्योति दीप ज्योतिपर्व पर नहीं जले
सो गए सिंदूर, मौन चूड़ियाँ हुईं
जो चले गए वे लौट के नहीं मिले
खिड़कियों से दो नयन निहारते रहे

मौत का लिफ़ाफ़ा लिए डाकिया मिला
वृद्ध माँ के स्तनों से दूध बह चला
बूढ़ा बाप पाँव थाम पूछने लगा
बोलो कैसा मेरा लाडला
डाकिये के नैन अश्रु झाड़ते रहे

कैसे भर सकेगा उनके कर्ज को वतन
प्राण दिए पर न लिया हाथ भर क़फ़न
संधियों पे और लोग दस्तख़त करें
वे निभा गए हैं देश को दिया वचन
प्राण दे के जय वतन पुकारते रहे

पूछ रहीं रखियाँ, कलाइयाँ कहाँ
बेवा दुल्हनों की शहनाइयाँ कहाँ
बालहठ पूछे कब आएंगे पिता
गिन-गिन काटें दिन

प्यास रक्त की नदी के नीर से बुझी नहीं
दानवों की कौम देवताओं से मिली नहीं
शांति के कपोत फड़फड़ा के पंख रह गए
युद्ध के पिशाच बाज की झपट रुकी नहीं
हम अपन का पक्ष ही पुगालते रहे

Jhansi Ki Rani : Subhadrakumari Chauhan

झाँसी की रानी : सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटि तानी थी
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी
दूर फ़िरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह सन्तान अकेली थी
नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी; उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथाएँ उसको याद ज़बानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

लक्ष्मी थी या दुर्गा, थी वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते, उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना; ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में
राजमहल में बजी बधाई ख़ुशियाँ छाईं झाँसी में
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई
किन्तु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी दया नहीं आई
नि:सन्तान मरे राजा जी, रानी शोक समानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हर्षाया
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया
फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झण्डा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा, झाँसी हुई बिरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात
क़ैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर पर भी घात
उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात
जब कि सिन्ध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो यही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

इनकी गाथा छोड़ चलें हम झाँसी के मैदानों में
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्व असमानों में
ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरन्तर पार
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार
यमुना-तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुँह की खाई थी
काना और मुन्दरा सखियाँ रानी के संग आईं थीं
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी
पर, पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार
किन्तु सामने नाला आया, था यह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गए सवार
रानी एक, शत्रु बहुतेरे; होने लगे वार-पर-वार
घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी
मिला तेज़ से तेज़, तेज़ की वह सच्ची अधिकारी थी
अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी
हमको जीवित करने आई, बन स्वतन्त्रता नारी थी
दिखा गई पथ, सिखा गई, हमको जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

Ghazal : Aatm Prakash Shukla

आत्मप्रकाश शुक्ल : ग़ज़ल

आग पी कर पचाने को दिल चाहिए
इश्क़ की चोट खाने को दिल चाहिए

नाम सुकरात का तो सुना है बहुत
मौत से मन लगाने को दिल चाहिए

अपने हम्माम में कौन नंगा नहीं
आईना बन के जाने को दिल चाहिए

राख हो कर शलभ ने शमा से कहा
अपनी हस्ती मिटाने को दिल चाहिए

आम यूँ तो बहुत ढाई अक्षर मगर
प्यार कर के निभाने को दिल चाहिए

Ghazal : Khwaja Meer Dard

ग़ज़ल : ख़्वाजा मीर ‘दर्द’

तोहमतें चंद अपने ज़िम्मे धर चले
जिस लिए आए थे हम सो कर चले

ज़िन्दगी है या कोई तूफ़ान है
हम तो इस जीने के हाथों मर चले

आह! मत बस जी जला, तब जानिए
जब कोई अफ़सूँ तिरा उस पर चले

हम जहाँ में आए थे तनहा, वले
साथ अपने अब उसे लेकर चले

साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाओ
जब तलक बस चल सके साग़र चले

‘दर्द’ कुछ मालूम है, ये लोग सब
किस तरफ़ से आए थे किधर चले

Sugandh lagti Ho Tum : Aatmprakash Shukla

आत्मप्रकाश शुक्ल : छंद लगती हो तुम

छंद घनानंद के, छुअन रसख़ान जैसी
शिल्प में बिहारी की सुगंध लगती हो तुम
ग़ालिब के शेर, कभी मीर की ग़ज़ल जैसी
जायसी के प्रेम का प्रबंध लगती हो तुम
अंग-अंग पे लिखा है रूप का निबंध एक
फेंकी हुई काम की कमंद लगती हो तुम
धारुवी बहाती जैसे गीत गुनगुनाती मीत
छंद क्या सुनाती ख़ुद छंद लगती हो तुम

Aatmprakash Shukla : Naache nadiya Beech Hilor

आत्मप्रकाश शुक्ल : नाचै नदिया बीच हिलोर

नाचै नदिया बीच हिलोर
बन में नचै बसंती मोर
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।

सूधै परैं न पाँव, हिया मां हरिनी भरै कुलाचैं
बैसा बावरी मुँह बिदरावै, को गीता को बाँचै
चिड़िया चाहै पंख पसार, उड़िबो दूरि गगन के पार
मांगै रसिया सों मीठी मनुहार गोरिया।
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।

गूंगे दरपन सों बतिरावै करि-करि के मुँहजोरी
चोरी की चोरी या कै ऊपर से सीनाजोरी
अपनो दरपन अपनो रूप फैली उजरी-उजरी धूप
मांगे अपने पै अपनो उधार गोरिया।
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।

नैना वशीकरन, चितवन में कामरूप को टोना
बोलै तो चांदी की घंटी, मुस्कावै तो सोना
ज्ञानी भूले ज्ञान-गुमान, ध्यानी जप-तप-पूजा-ध्यान
लागै सबके हिये की हकदार गोरिया।
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।

सांझ सलाई लै के कजरा अंधियारे में पारो
धरि रजनी की धार गुसैयां, बड़ो गजब कर डारो
चंदा बिंदिया दई लगाय, नजरि न काहू की लग जाय
लिखी विधिना ने किनके लिलार गोरिया
लागै सोरहों बसंत को सिंगार गोरिया।

Maati Ka Palang Mila : Aatmaprakash Shukla

काँच का खिलौना : आत्मप्रकाश शुक्ल

माटी का पलंग मिला राख का बिछौना
ज़िन्दगी मिली कि जैसे काँच का खिलौना

एक ही दुकान में सजे हैं सब खिलौने
खोटे-खरे, भले-बुरे, साँवरे-सलोने
कुछ दिन दिखे पारदर्शी, चमकीले
उड़े रंग, निरे अंग हो गए घिनौने
जैसे-जैसे बड़ा हुआ होता गया बौना
ज़िन्दगी मिली कि जैसे काँच का खिलौना

मौन को अधर मिले अधरों को वाणी
प्राणों को पीर मिली पीर को कहानी
मूठ बांध आए, चले ले खुली हथेली
पाँव को डगर मिली वह भी अनजानी
मन को मिला है यायावर मृगछौना
ज़िन्दगी मिली कि जैसे काँच का खिलौना

धरा, नभ और पवन, अगिन और पानी
पाँच लेखकों ने लिखी एक ही कहानी
एक दृष्टि है जो सारी सृष्टि में समाई
एक शक्ल की ही सारी दुनिया दीवानी
एक मूँठ माटी गई तौल सारा सोना
ज़िन्दगी मिली कि जैसे काँच का खिलौना

शोर भरी भोर मिली, बावरी दुपहरी
साँझ थी सयानी किन्तु गूंगी और बहरी
एक रात लाई बड़ी दूर का संदेशा
फ़ैसला सुना के ख़त्म हो गई कचहरी
ओढ़ने को मिला वही दूधिया उढ़ौना
ज़िन्दगी है मिली जैसे काँच का खिलौना

Ab Desh Mein Gandhi Mat Aana : Sunil Jogi

अब देश में गांधी मत आना : सुनील जोगी

अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना
सत्य, अहिंसा खोए अब तो, खेल हुआ गुंडाना

आज विदेशी कंपनियों का, है भारत में ज़ोर
देशी चीज़ें अपनाने का, करोगे कब तक शोर
गली-गली में मिल जाएंगे, लुच्चे, गुंडे, चोर
थाने जाते-जाते बापू, हो जाओगे बोर
भ्रष्टाचारी नेताओं को, पड़ेगा पटियाना।
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।

डी.टी.सी. की बस में धक्का कब तक खाओगे
बिजली वालों से भी कैसे जान बजाओगे
अस्पताल में जाकर दवा कभी न पाओगे
लाठी लेकर चले तो ‘टाडा’ में फँस जाओगे
खुजली हो जाएगी, जमुना जी में नहीं नहाना।
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।

स्विस बैंकों में खाता होना बहुत ज़रूरी है
गुंडों से भी नाता होना बहुत ज़रूरी है
घोटालों के बिना देश में मान न पाओगे
राष्ट्रपिता क्या, एम.एल.ए. भी ना बन पाओगे
‘रघुपति राघव’ छोड़ पड़ेगा ‘ईलू ईलू’ गाना
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।

खादी इतनी महंगी है, तुम पहन न पाओगे
इतनी महंगाई में कैसे, घर बनवाओगे
डिग्री चाहे जितनी हों, पर काम न पाओगे
बेकारी से, लाचारी से, तुम घबराओगे
भैंस के आगे पड़े तुम्हें भी, शायद बीन बजाना।
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।

संसद में भी घुसना अब तो, नहीं रहा आसान
लालक़िले जाओगे तो, हो जाएगा अपमान
ऊँची-ऊँची कुर्सी पर भी, बैठे हैं बेईमान
नहीं रहा जैसा छोड़ा था, तुमने हिंदुस्तान
राजघाट के माली भी, मारेंगे तुमको ताना।
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।

होंठ पे सिगरेट, पेट में दारू, हो तो आ जाओ
तन आवारा, मन बाज़ारू हो, तो आ जाओ
आदर्शों को टांग सको तो, खूंटी पर टांगो
लेकर हाथ कटोरा कर्ज़ा, गोरों से मांगो
टिकट अगर मिल जाए तो, तुम भी चुनाव लड़ जाना।
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।

अगर दोस्ती करनी हो तो, दाउद से करना
मंदिर-मस्जिद के झगड़े में, कभी नहीं पड़ना
आरक्षण की, संरक्षण की, नीति न अपनाना
चंदे के फंदे को अपने, गले न लटकाना
कहीं माधुरी दीक्षित पर, तुम भी न फ़िदा हो जाना।
अब देश में गांधी मत आना, मत आना, मत आना।